जन्म दिवस विशेष-महान श्रमिक क्रन्तिकारी ठाकुर प्यारेलाल सिंह छत्तीसगढ़ में श्रमिक आन्दोलन के सूत्रधार ठाकुर प्यारेलाल सिंह का जन्म 21 दिसम्बर, 1891 को छत्तीसगढ़ में राजनांदगांव ज़िले के 'दैहान' नामक गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम दीनदयाल सिंह तथा माता का नाम नर्मदा देवी था। सन 1920 में राजनांदगांव में मिल मज़दूरों ने हड़ताल की थी, जो 37 से भी अधिक दिनों तक चली थी और मिल अधिकारियों को मज़दूरों की सभी मांगें मंजूर करनी पड़ी थीं। वह हड़ताल ठाकुर प्यारेलाल के नेतृत्व में हुई थी। ठाकुर प्यारेलाल 1920 में पहली बार महात्मा गाँधी के संपर्क में आए थे। असहयोग आंदोलन एवं सत्याग्रह आन्दोलन में उन्होंने सक्रिय भाग लिया तथा गिरफ़्तार होकर जेल भी गए। वर्ष 1945 में छत्तीसगढ़ के बुनकरों को संगठित करने के लिए उनके नेतृत्व में 'छत्तीसगढ़ बुनकर सहकारी संघ' की स्थापना हुई थी। प्रवासी छत्तीसगढ़ियों को शोषण एवं अत्याचार से मुक्त कराने की दिशा में वे सदा सक्रिय रहे। ठाकुर प्यारेलाल की प्रारम्भिक शिक्षा राजनांदगांव तथा रायपुर में हुई। हाईस्कूल के लिए उन्हें रायपुर आना पड़ा था। सन 1909 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। इसके बाद 1913 में उन्होंने नागपुर से बी.ए. पास किया। नागपुर तथा जबलपुर से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी और फिर 1916 में वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वकालत प्रारम्भ कर दी ठाकुर प्यारेलाल वकालत छोड़ने के बाद गांव-गांव घूमकर चरखे और खादी का प्रचार करने लगे। प्रचार सिर्फ़ दूसरों के लिए नहीं था। प्रचार तोे अपने-आप के लिए भी था। ऐसा कहते हैं कि उन दिनों प्यारेलाल जी सिर्फ़ एक ही खादी की धोती पहनते थे। उसी को पहनकर स्नान करते, धोती का एक छोर पहने रहते, दूसरा छोर सुखाते, दूसरा छोर सूखाने पर उसे पहन लेते और पहला छोर सुखाते। तीन साल तक प्यारेलाल जी उसी धोती को पहनते रहे। 1930 और 1932 के आन्दोलन में ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने क्रांतिकारी की मुख्य भूमिका निभाई। उन्होंने हज़ारों की संख्या में किसानों को संगठित कर "पट्टा मत लो, लगान मत पटाओं" आन्दोलन चलाकर ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी। दोनों बार उन्हें डेढ़-डेढ़ वर्ष की सजा हुई। उनसे वकालत की सनद ब्रिटिश सरकार ने छींन ली। स्वतंत्रता आन्दोलन में ठाकुर साहब संभवतः अकेले वकील होंगे, जिन्हें आज़ादी की लड़ाई में सक्रीय भूमिका निभाने के कारण उनके जीवन यापन का काम वकालत पेशा जारी रखने के लिए वकालत का सनद नहीं लौटाया गया। अंग्रेज़ हुकुमत की टृष्टि में ठाकुर प्यारेलाल बहुत बड़े विप्लवी थे। इनके कार्यों की सतत निगरानी की जाती थी। सन 1934 ई. में वे 'महाकोशल कांग्रेस कमेटी' के महासचिव निर्वाचित हए थे। खरे मंत्रिमंडल में वे कुछ समय के लिए शिक्षा मंत्री भी रहे। 22 अक्टूबर,1954 को भूटान की यात्रा के समय अस्वस्थ हो जाने कारण ठाकुर प्यारेलाल सिंह का निधन हो गया। छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में सहकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए "ठाकुर प्यारेलाल सिंह सम्मान" स्थापित किया है।
प्रस्तुति – नवीन चन्द्र पोखरियाल रामनगर, जिला नैनीताल उत्तराखंड मोबाइल नंबर – 9897095811