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नई दिल्ली 28 दिसम्बर। हाल के दिनों में हिंदुओं के नाम पर तीन बड़े कार्यक्रम हुए हैं। पहला- चित्रकूट का हिंदू एकता महाकुंभ, दूसरा- हरिद्वार का धर्म संसद और तीसरा- छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आयोजित धर्म संसद। आश्चर्यजनक तौर पर चित्रकूट महाकुंभ की मीडिया में उतनी चर्चा नहीं हुई, जितना हल्ला अन्य दो जगहों पर हुए धर्म संसद को लेकर हो रहा है। ऐसा नहीं है कि चित्रकूट का आयोजन फीका था। जगद्गुरु तुलसी पीठाधीश्वर पद्म विभूषण स्वामी रामभद्राचार्य की पहल पर आयोजित इस महाकुंभ के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक परम पूज्यनीय मोहन भागवत थे। श्रीश्री रविशंकर, साध्वी ऋतंभरा, स्वामी चिदानंद सरस्वती, आचार्य लोकेश मुनि, रमेश भाई ओझा जैसे संतों का जमावड़ा था। लाखों लोग जुटे थे। मोहन भागवत ने मंच से बकायदा धर्मांतरण रोकने और लोगों की घर वापसी करवाने की शपथ दिलाई थी। लव जिहाद सहित उन तमाम चुनौतियों के खिलाफ प्रस्ताव पास किया गया था, जिनसे हिंदू मुकाबिल हैं। बावजूद इसके वामपंथी नैरेटिव वाली मीडिया और सोशल मीडिया ने चित्रकूट के हिंदू एकता महाकुंभ को तवज्जो क्यों नहीं दी? मोटे तौर पर इसका एक ही कारण समझ आता है कि इससे उन सभी खतरों पर बात होने लगती जिनसे हिंदू जूझ रहे हैं। इस्लामी कट्टरपंथ और ईसाई मिशनरियों के प्रपंच पर चर्चा होने लगती। लेकिन चित्रकूट पर खमोश रहा यही जमात ‘धर्म संसद’ पर खूब हल्ला कर रहा है और इसका इस्तेमाल ‘डरा हुआ मुसलमान’ नैरेटिव को हवा देने के लिए कर रहा है। यह बताने की कोशिश कर रहा है कि हिंदू उन्मादी हैं और मुस्लिम प्रताड़ित। यह भी अजीब संयोग है कि कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में आयोजित जिस ‘धर्म संसद’ में महात्मा गाँधी पर कथित बदजुबानी हुई, उसके आयोजकों में भी कांग्रेसी शामिल हैं। मंच पर विराजमान लोगों की भी कांग्रेस से बहुत नजदीकियां रही है। कथित बदजुबानी में शामिल और उसका विरोध करने वाले, दोनों खेमे भी कांग्रेस के करीब बताए जाते हैं। इस मामले में अभी तक जिन दो राज्यों (छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र) में एफआईआर हुई है, वहाँ की सत्ता में भी कांग्रेस है। सबसे दिलचस्प यह है कि इसकी आड़ लेकर सवाल पूछने वाले भी कांग्रेसी ही हैं। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कहा है, “धर्म संसद का आयोजन कांग्रेस का था। उसके वरिष्ठ लोग ही आयोजन में सक्रिय भूमिका में थे। फिर इसमें भाजपा का नाम घसीटना बिल्कुल उचित नहीं है। यह कांग्रेस की अंदरुनी राजनीति का नतीजा है।” ध्यान देने वाली बात यह है कि न तो रमन सिंह ने और न बीजेपी के किसी नेता ने, न तो गाँधी पर टिप्पणी को जायज बताया है और न ऐसा करने वाले का बचाव किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह भी कांग्रेस के उस स्क्रिप्ट का हिस्सा है जिसके तहत उसके पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने कहा था- मैं हिंदू हूँ, हिंदुत्ववादी नहीं। यह भी जगजाहिर है कि संत कालीचरण जिन्होंने गाँधी पर टिप्पणी की है, वे भय्यूजी महाराज के करीबी रह चुके हैं। भय्यूजी महाराज इंदौर के एक संत थे। 2018 में उन्होंने खुद को गोली मार आत्महत्या कर ली थी। जाँच में यह बात सामने आई थी कि निजी और पारिवारिक जीवन की परेशानियों से तंग आकर उन्होंने ये कदम उठाया था। लेकिन उस वक्त कॉन्ग्रेस ने इसके लिए मध्य प्रदेश की तत्कालीन सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था कि बीजेपी उन पर अपने लिए काम करने का दबाव डाल रही थी, जिसकी वजह से वे मानसिक तनाव में थे। इस मामले की सीबीआई जाँच की भी कांग्रेस ने माँग की थी। कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने तो यहाँ तक कह दिया था कि भय्यूजी महाराज ने उनको फोन कर बताया था कि वे नर्मदा में शिवराज सरकार द्वारा हो रहे अवैध खनन से चिंतित हैं। उन्हें मुँह बंद रखने के लिए मंत्री पद का ऑफर दिया गया था, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था। इसी तरह संत कालीचरण के बयान के बाद मंच छोड़ने वाले महंत रामसुंदर दास भी कांग्रेस के करीबी बताए जाते हैं। वे दूधाधारी मठ के महंत हैं। 10 साल कांग्रेस से विधायक रहे हैं। फिलहाल छत्तीसगढ़ गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ अक्सर सरकारी कार्यक्रमों में नजर आते हैं। महंत रामसुंदर दास के अलावा कांग्रेस विधायक विकास उपाध्याय और रायपुर नगर निगम के सभापति प्रमोद दुबे भी इस ‘धर्म संसद’ के आयोजकों में शामिल थे। जाहिर है इस आयोजन से कांग्रेस के कनेक्शन को लेकर रमन सिंह और उन तमाम लोगों के सवालों को केवल राजनीतिक विरोधी होने के कारण खारिज किया जा सकता। यह भी सार्वजनिक तथ्य है कि मुस्लिमों की तुष्टिकरण के लिए इसी कांग्रेस ने ‘भगवा आतंकवाद’ गढ़ा था। राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के अभ्युदय, अपनी दुर्गति और दशकों तक उपेक्षित रहे हिंदू आवाजों को जगह मिलने से बौखलाई कांग्रेस आज भी हिंदुओं को बदनाम करने के तमाम प्रपंच रचती रहती है। यह हमने अयोध्या के राम मंदिर को लेकर भी देखा। काशी विश्वनाथ धाम के कॉरिडोर पर भी देखा है। रायपुर ‘धर्म संसद’ के साथ भी जितने संयोग एक साथ दिख रहे हैं, उससे इसे भी कांग्रेस की उस रणनीति से अलग देखने का कोई ठोस कारण नजर नहीं आता, जिसका एक सूत्री एजेंडा हर उस चीज को बदनाम करना है, जिससे हिंदू या उनके प्रतीक चिह्न जुड़े हो। क्या यह भी संयोग है कि आज जिस पार्टी के रायपुर ‘धर्म संसद’ से इतने कनेक्शन निकल रहे हैं, कभी उसके ही नेता ने कहा था- लोग लड़की छेड़ने मंदिर जाते हैं?

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